रुद्रप्रयाग (उत्तराखंड): केदारनाथ यात्रा के दौरान घोड़े-खच्चरों के बीच इक्वाइन इन्फ्लुएंजा नामक विषाणु जनित रोग के बढ़ते प्रभाव के चलते यात्रा मार्ग पर एक दिन के लिए घोड़े खच्चरों की आवाजाही पर रोक लगा दी गई थी। जिसे आज फिर अगले 24 घंटे के लिए बढ़ा दिया गया है।

मुख्य पशु चिकित्साधिकारी डॉ. आशीष रावत ने बताया कि जिला प्रशासन के चिकित्सकों के साथ ही राष्ट्रीय अश्व अनुसंधान संस्थान हिसार से विशेषज्ञ चिकित्सकों का एक दल रुद्रप्रयाग पहुंच चुका है जो लगातार घोड़े-खच्चरों की बीमारी एवं स्थिति पर नजर रख रहा है।

उन्होंने बताया कि चिकित्सक मंगलवार से ही गौरीकुंड़ क्षेत्र में घोड़े-खच्चरों के सैंपल ले रहे हैं और यह प्रक्रिया अभी भी जारी है। इसलिए सैंपलिंग प्रक्रिया के पूरी होने एवं जांच रिपोर्ट की प्रतीक्षा के चलते यात्रा मार्ग पर घोड़े-खच्चरों के परिचालन पर आगामी 24 घंटे तक पूर्ण प्रतिबंध लगाया जाता है। इस अवधि में पशुओं के संचालन पर पूर्णतया रोक रहेगी. जिस दौरान अस्वस्थ पशुओं को पृथक कर क्वारंटाइन किया जाएगा एवं राष्ट्रीय अश्व अनुसंधान संस्थान हिसार को प्रेषित की गई जांच रिपोर्ट आने तक रोक जारी रहेगी। रोक हटाने संबंधी निर्णय इसके बाद लिया जाएगा।

पूर्व में भी हो चुका है वायरस का प्रकोप:

चिकित्सकों का कहना है कि इक्वाइन इन्फ्लुएंजा मुख्यत श्वसन मार्ग से फैलता है और बेहद तेजी से एक पशु से दूसरे पशु में संक्रमण फैला सकता है। वर्ष 2009 में भी इस रोग ने केदारनाथ यात्रा को प्रभावित किया था। फिलहाल इस रोग की कोई वैक्सीन उपलब्ध नहीं है। लेकिन समय पर इलाज और आराम से पशु जल्दी स्वस्थ हो सकते हैं।

प्रभावित क्षेत्रों की पहचान और रिकॉर्ड स्तर की स्क्रीनिंग:

गौरीकुंड और आसपास के क्षेत्रों में जैसे ही लक्षण सामने आए, संबंधित गांवों को प्रभावित क्षेत्र घोषित कर दिया गया. जिले में बाहर से आने वाले प्रत्येक घोड़े और खच्चर की गहन स्क्रीनिंग की जा रही है। बीते एक माह में 16 से अधिक पशुओं की स्वास्थ्य जांच की जा चुकी है। केवल पूर्णतः स्वस्थ पशुओं को ही जिले में प्रवेश की अनुमति दी जा रही है।

स्थिति नियंत्रण में लाने के लिए उठाए गए कदम:

पशुपालन विभाग ने तत्काल प्रभाव से अतिरिक्त पशु चिकित्सकों की तैनाती की है। गौरीकुंड समेत अन्य संवेदनशील स्थलों पर सरकारी दवाएं और उपचार सुविधाएं अत्यंत रियायती दरों पर उपलब्ध कराई जा रही हैं। वर्तमान में कुछ पशुओं में पेचिश जैसे तीव्र लक्षण भी देखे जा रहे हैं। इस गंभीर परिस्थिति को देखते हुए राष्ट्रीय अश्व अनुसंधान केंद्र, हिसार से विशेषज्ञों की टीम बुलाकर जांच प्रारंभ की गई है।

पर्याप्त विशेषज्ञों की टीम तैनात:

पुशुपाल विभाग द्वारा इस स्थिति से निपटने के लिए जनपद में एक मुख्य पशुचिकित्सा अधिकारी, दो उप मुख्य पशुचिकित्सा अधिकारी, 20 पशु चिकित्सक, राष्ट्रीय अश्व अनुसंधान केंद्र के दो वैज्ञानिकों की टीम तैनात की गई है। इसके अतिरिक्त बुधवार को पंतनगर विश्वविद्यालय के दो विशेषज्ञ डॉक्टर भी केदारघाटी पहुचेंगे। यह दोनों विशेषज्ञ डॉक्टर वर्ष 2009 में भी इस बीमारी के उपचार में कार्य कर चुके हैं।

यात्रा संचालन में सहयोग की अपील:

जिला प्रशासन ने स्पष्ट किया है कि जब तक स्थिति सामान्य नहीं हो जाती, तीर्थयात्री डंडी, कंडी और पिट्ठू जैसे वैकल्पिक माध्यमों से यात्रा करें. व्यापारियों से भी अनुरोध किया गया है कि वे सामान ढुलाई के लिए इन विकल्पों का प्रयोग करें. ताकि बीमार पशुओं को आराम मिल सके और संक्रमण को फैलने से रोका जा सके।

मुख्य पशुचिकित्साधिकारी ने कहा कि ‘यह संकट केवल पशुधन का नहीं, बल्कि हमारी यात्रा व्यवस्था और स्थानीय आर्थिकी से भी गहराई से जुड़ा हुआ है. उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि जैसे ही लक्षण सामने आए, तुरंत स्क्रीनिंग, क्वारंटाइन और विशेषज्ञों की सहायता शुरू कर दी गई थी। पंतनगर, देहरादून और हिसार से परामर्श लेकर सभी आवश्यक टीमें गठित की जा चुकी हैं. उन्होंने अपील की कि वे किसी भी प्रकार के घरेलू उपचार या अफवाहों पर विश्वास न करें। केवल विभागीय पशु चिकित्सकों से ही संपर्क करें और बीमारी के किसी भी लक्षण को नजर अंदाज न करें।

डॉ. आशीष रावत ने बताया कि प्रिवेंशन एंड कंट्रोल ऑफ इंफेक्शियस डिजीज इन एनिमल्स 2009 अधिनियम के प्राविधानों के अंतर्गत अस्वस्थ पशु को अलग रखने एवं अस्वस्थ पशु से कार्य ना कराने का उत्तर दायित्व पूर्णतः पशु मालिक का होगा। यदि ऐसा किया जाता है, तो संबंधित पशु मालिक के विरूद्ध वैधानिक कार्रवाई सुनिश्चित की जाएगी।

 

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