हल्द्वानी: राज्य में वनाग्नि रोकने को लेकर तैयारी अभी से शुरू हो गई है। इस बार 1996 के बाद पहली बार जंगलों के बीच बनाई जाने वाली फायर लाइन में उग आए पांच लाख पेड़ों को काटा जाएगा।इसको लेकर वन विभाग ने तैयारियां शुरू कर दी है।
वन विभाग 15 फरवरी से 15 जून तक फायर सीजन मानता है। इस दौरान जंगल में आग की काफी घटनाएं होती हैं। सीजन शुरू होने से पहले ही जंगल को आग से बचाने के लिए कई जरूरी कदम उठाने होते हैं। जिसमें फायर लाइन की साफ सफाई प्रमुख रूप से शामिल हैं। सुप्रीम कोर्ट गोधा वर्मन केस मामले में एक आदेश के चलते जंगल में 1 हजार मीटर से ऊंचाई के पेड़ काटने पर रोक लगाई गई थी। जिसके चलते 1996 से फायर लाइन के बीच में उगे पेड़ों को भी नहीं हटाया गया। आज ये पेड़ विशालकाय हो गए हैं, फायर लाइन पूरी तरह से जंगल में तब्दील हो गई है। जिससे जंगल की आग को फैलने से रोकना मुश्किल हो रहा है। इधर, फायर लाइन को लेकर 18 अप्रैल 2023 को सुप्रीम कोर्ट ने अपने निर्णय को बदला है। प्रमुख वन संरक्षक (हॉफ) ने 18 अप्रैल 2023 के निर्णय का हवाला देते हुए 28 अक्तूबर को सभी डीएफओ को फायर लाइन को साफ करने के निर्देश दे दिए हैं। इसमें कुमाऊं में 1.5 लाख तो गढ़वाल मंडल में 3.5 लाख पेड़ काटे जाएंगे। जिसके बाद वन अधिकारियों ने फायर लाइन में उगे पेड़ों का छपान शुरू कर दिया है।
दो वन प्रभागों के बीच 100 फीट की फायर लाइन जरूरी
जंगलों के बीच में फायर लाइन खींचने के लिए ब्रिटिश काल से ही नियम तय हैं। इन नियमों के तहत दो वन प्रभागों के बीच 100 फीट की फायर लाइन होनी चाहिए। वहीं वन प्रभागों के भीतर विभिन्न रेंज के बीच 50 फीट की फायर लाइन जरूरी है। इसके अलावा विभिन्न बीट के बीच 30 फीट की फायर लाइन होने का नियम है। ताकि जंगलों की आग को फैलने से रोका जा सके।
विशेषज्ञ की राय
उत्तराखंड के पूर्व पीसीसीएफ आईडी पांडे कहते हैं कि फायर लाइन का सिस्टम आज का नहीं है, बल्कि ब्रिटिशकाल से चल रहा है। यह जंगल की आग पर काबू पाने का वैज्ञानिक तरीका है। जंगल की आग को नियंत्रित करना है, तो फायर लाइन को पूरी तरह से साफ रखा जाना अनिवार्य है।
प्रमुख वन संरक्षक कार्यालय से फायर लाइन को साफ करने के निर्देश मिले हैं। तराई पूर्वी वन प्रभाग में फायर लाइन में उगे पेड़ों का छपान कर दिया गया है। ताकि फायर सीजन शुरू होने से पहले फायर लाइन को साफ कर वनाग्नि के फैलने की संभावनाओं को रोका जा सके।
हिमांशु बागरी, डीएफओ, तराई पूर्वी वन प्रभाग