उत्तराखंड सरकार ने प्रदेश भर में नजूल भूमि के फ्री होल्ड पर पूरी तरह से रोक लगाने के आदेश जारी कर दिए हैं। शासन के इस फैसले से प्रदेश के हजारों परिवारों को झटका लगा है। जो लंबे समय से नजूल भूमि पर कब्जे पर रह रहे थे। और स्वामित्व हासिल करने में जुटे थे।

अब नजूल भूमिसे पर फ्री होल्ड की प्रक्रियाकब्जे पर रह रहे थे।को तत्काल प्रभाव से बंद कर दिया गया है।

शासन ने यह निर्णय नैनीताल हाईकोर्ट के ताजा निर्देशों के अनुपालन में लिया है. 16 अप्रैल 2025 को हाईकोर्ट की सिंगल बेंच ने नजूल भूमि पर कब्जाधारियों के फ्री होल्ड के खिलाफ रोक लगाने के आदेश दिए थे. इसके बाद उत्तराखंड शासन ने मंडलायुक्तों और सभी जिलाधिकारियों को आदेश जारी कर नजूल भूमि से जुड़े सभी फ्री होल्ड कार्य तत्काल प्रभाव से रोकने के निर्देश दे दिए हैं.

किसे कहा जाता है नजूल भूमि

नजूल भूमि का इतिहास आजादी से पहले का है. जब अंग्रेजों ने विभिन्न रियासतों को हराया तो उन्होंने रियासतों की कई जमीनों को अपने नियंत्रण में ले लिया. ऐसी जमीनें, जिन पर कोई निजी स्वामित्व सिद्ध नहीं हो सका, नजूल भूमि कही जाती हैं. स्वतंत्रता के बाद भी कई स्थानों पर यह भूमि सरकारी नियंत्रण में रही और समय-समय पर विभिन्न व्यक्तियों को लीज पर दी गई।

उत्तराखंड के उधमसिंहनगर, नैनीताल और देहरादून जैसे जिलों में बड़ी मात्रा में नजूल भूमि फैली हुई है. इन क्षेत्रों में कई कालोनियां और बस्तियां वर्षों से बस चुकी हैं, जिनमें लगभग डेढ़ लाख लोग निवास कर रहे हैं. इनमें से कई ने फ्री होल्ड की प्रक्रिया के जरिए भूमि का मालिकाना हक पाने की कोशिश की थी.

फ्री होल्ड प्रक्रिया और उसका विवादित इतिहास

राज्य सरकार ने वर्ष 2009 में नजूल नीति लागू कर, तय शुल्क के आधार पर इन कब्जाधारियों को फ्री होल्ड स्वामित्व देने का निर्णय लिया था. लेकिन इस नीति को नैनीताल हाईकोर्ट में चुनौती दी गई और 2018 में हाईकोर्ट ने इसे असंवैधानिक करार देते हुए निरस्त कर दिया. अदालत ने कहा कि सरकारी भूमि को केवल कब्जे के आधार पर निजी स्वामित्व में नहीं दिया जा सकता.

हाईकोर्ट के इस आदेश से राज्य में लगभग 8000 परिवार प्रभावित हुए थे, जिन्होंने फ्री होल्ड शुल्क जमा कर जमीन के मालिकाना हक ले लिया था. उनके लिए यह निर्णय किसी बड़े झटके से कम नहीं था. इसके बाद राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया. सुप्रीम कोर्ट ने 31 दिसंबर 2021 को हाईकोर्ट के आदेश पर स्थगनादेश (स्टे) जारी कर दिया. इस बीच, सरकार ने नजूल नीति 2021 को मंजूरी देकर फ्री होल्ड प्रक्रिया फिर से शुरू कर दी।

था हाईकोर्ट का फैसला

राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में मामला विचाराधीन होने के बावजूद नजूल नीति 2021 लागू कर दी थी. इसे पहले एक वर्ष के लिए लागू किया गया और बाद में इसकी अवधि बढ़ाते हुए 10 दिसंबर 2023 तक कर दी गई. इसके अतिरिक्त, शासन ने एक और आदेश जारी कर फ्री होल्ड प्रक्रिया को आगे भी जारी रखा. यानी नजूल भूमि पर कब्जाधारी लोग कुछ निर्धारित शुल्क का भुगतान कर सरकारी भूमि का स्वामित्व हासिल कर सकते थे.

हालांकि, यह पूरी प्रक्रिया एक बार फिर न्यायिक विवादों में उलझ गई. 16 अप्रैल 2025 को नैनीताल हाईकोर्ट की सिंगल बेंच ने फ्री होल्ड की इस प्रक्रिया पर पूरी तरह रोक लगा दी. हाईकोर्ट ने स्पष्ट कहा कि जब तक सुप्रीम कोर्ट में अंतिम निर्णय नहीं आता, तब तक नजूल भूमि का फ्री होल्ड नहीं किया जा सकता.

सरकार की मजबूरी में लिया गया फैसला

हाईकोर्ट के आदेश के बाद राज्य सरकार ने तुरंत कार्रवाई करते हुए सभी जिलाधिकारियों को आदेश जारी किए कि नजूल भूमि का कोई भी फ्री होल्ड अब नहीं किया जाएगा. सचिव आवास आर. मीनाक्षी सुंदरम ने इस आदेश की पुष्टि करते हुए कहा कि नजूल भूमि पर अब किसी भी प्रकार की फ्री होल्ड प्रक्रिया निष्प्रभावी हो गई है. शासन के इस आदेश से उन हजारों परिवारों को करारा झटका लगा है, जो वर्षों से नजूल भूमि पर बसे हुए हैं और स्वामित्व की उम्मीद लगाए बैठे थे.

उत्तराखंड के उधमसिंहनगर, देहरादून और नैनीताल जिलों में नजूल भूमि पर बड़ी संख्या में अवैध कब्जे और पुरानी बस्तियां हैं. बहुत से लोगों ने अपने जीवन भर की कमाई इन जमीनों पर घर बनाने में लगा दी है. इनमें से कई लोगों ने शासन की पूर्व नीतियों के तहत शुल्क भरकर फ्री होल्ड के दस्तावेज भी बनवा लिए थे, लेकिन अब उनकी स्थिति भी अनिश्चित हो गई है. विशेषज्ञों का मानना है कि यदि सुप्रीम कोर्ट का अंतिम फैसला भी हाईकोर्ट के आदेशों की पुष्टि करता है, तो नजूल भूमि पर बसे लाखों लोगों के सामने बड़ी कानूनी चुनौती खड़ी हो सकती है।

नजूल भूमि विवाद का राजनीतिक पहलू

राजनीतिक दृष्टि से भी नजूल भूमि का मुद्दा काफी संवेदनशील रहा है. विभिन्न सरकारों ने समय-समय पर इस मुद्दे को जनता के बीच उठाया और वोट बैंक के रूप में इस्तेमाल किया. चुनावों के दौरान कई नेताओं ने नजूल भूमि पर बसे लोगों को स्वामित्व देने के वादे किए. लेकिन कानूनी अड़चनों और न्यायिक निर्देशों के चलते सरकारें कभी भी इस दिशा में स्थायी समाधान नहीं निकाल पाईं. अब ताजा आदेशों के बाद यह मुद्दा फिर से राजनीतिक चर्चाओं का केंद्र बन गया है.

 

अब सबकी निगाहें सुप्रीम कोर्ट के अंतिम निर्णय पर टिकी हैं. यदि सुप्रीम कोर्ट राज्य सरकार के पक्ष में निर्णय देता है, तो नजूल भूमि के कब्जाधारियों को राहत मिल सकती है. अन्यथा, हजारों परिवारों को अपने वर्षों पुराने बसे घरों को छोड़ने की नौबत आ सकती है. फिलहाल, शासन ने नजूल भूमि से जुड़े सभी फ्री होल्ड मामलों पर तत्काल प्रभाव से रोक लगा दी है और जिलाधिकारियों को स्पष्ट निर्देश दिए हैं कि वे इस संदर्भ में उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय के आदेशों का पालन सुनिश्चित करें।

उत्तराखंड में नजूल भूमि के फ्री होल्ड पर लगी रोक ने हजारों परिवारों की उम्मीदों पर पानी फेर दिया है. वर्षों से सरकारी नीतियों के भरोसे जमीन पर बसे लोगों के सामने अब अस्तित्व का संकट खड़ा हो गया है. आने वाले समय में सुप्रीम कोर्ट का फैसला तय करेगा कि इन लोगों का भविष्य किस दिशा में जाएगा. फिलहाल, शासन और प्रशासन हाईकोर्ट के निर्देशों का पालन करते हुए नजूल भूमि से जुड़ी सभी प्रक्रियाओं को ठप कर चुका है।

 

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